जन्मजात ग्लूकोमा का अर्थ
जन्मजात ग्लूकोमा एक असामान्य बीमारी है, जो लगभग 10,000 में से एक नवजात शिशु को प्रभावित करती है। यह ऐसी स्थिति है जिसमें आँख की आंतरिक जल निकासी प्रणाली ठीक से काम नहीं करती। इसके कारण आंख की संरचना प्रभावित हो सकती है, जिससे कभी-कभी भेंगापन भी विकसित हो सकता है।
आंख के अंदर दबाव (IOP) बढ़ना
जब आंख के अंदर बनने वाला फ्लूइड बाहर नहीं निकल पाता, तो आंख के अंदर का दबाव बढ़ जाता है। यह दबाव ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचाता है, जिससे दृष्टि में गिरावट आती है।
जन्म के समय या पहले वर्ष में निदान
ज्यादातर मामलों में जन्म के समय या जीवन के पहले वर्ष में इस बीमारी का पता चल जाता है। शुरुआती पहचान और इलाज से दृष्टि को काफी हद तक बचाया जा सकता है।
जन्मजात ग्लूकोमा के लक्षण
बड़ी और धुंधली आंखें
बच्चों की आंखें सामान्य से बड़ी और कभी-कभी नीली या धुंधली दिखाई दे सकती हैं। यह कॉर्निया की सूजन का संकेत है।
अत्यधिक आंसू आना
आंखों से लगातार आंसू आना, चाहे बच्चा रो रहा हो या नहीं, जन्मजात ग्लूकोमा का एक प्रमुख लक्षण हो सकता है।
रोशनी से डरना (Photophobia)
ऐसे बच्चे तेज रोशनी में आंखें खोलने से कतराते हैं। यह लक्षण नजर आने पर तुरंत नेत्र विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए।
दृष्टि में गिरावट और कॉर्निया में धुंधलापन
कॉर्निया में हल्का या स्पष्ट धुंधलापन आ सकता है। अगर बच्चा चीजों को ठीक से नहीं देख पा रहा हो, तो यह गंभीर संकेत हो सकता है।
जन्मजात बनाम किशोर ग्लूकोमा
जन्मजात ग्लूकोमा: 0-1 वर्ष में
यह जीवन के पहले वर्ष में नजर आता है और इसके लक्षण अधिक स्पष्ट होते हैं।
किशोर ग्लूकोमा: 3-18 वर्ष में
किशोर अवस्था में होने वाला ग्लूकोमा धीरे-धीरे बढ़ता है और इसके लक्षण कम स्पष्ट होते हैं। यह अक्सर रूटीन चेकअप के दौरान पकड़ में आता है।
लक्षणों और प्रगति में अंतर
जन्मजात ग्लूकोमा में लक्षण तेजी से प्रकट होते हैं, जबकि किशोर ग्लूकोमा धीरे-धीरे दृष्टि को नुकसान पहुंचाता है। दोनों की जांच और इलाज में भिन्नता होती है।
जन्मजात ग्लूकोमा का प्रारंभिक निदान
नेत्र जांच: IOP मापन, गोनियोस्कोपी
बच्चे की आंखों की जांच विशेष उपकरणों की मदद से की जाती है, जिससे आंख के दबाव को मापा जा सकता है।
EUAs (Examination Under Anesthesia)
बहुत छोटे बच्चों में जांच के लिए एनेस्थीसिया देकर Examination Under Anesthesia किया जाता है, जिससे सटीक जानकारी मिलती है।
विशेषज्ञ के द्वारा नियमित निगरानी
निदान के बाद नियमित अंतराल पर नेत्र विशेषज्ञ से फॉलो-अप आवश्यक होता है ताकि आंखों की स्थिति पर निगरानी रखी जा सके।
बच्चों में ग्लूकोमा के लिए एडवांस सर्जिकल टेक्निक्स
ग्लूकोमा का स्थायी समाधान सर्जरी से संभव है। आज के समय में कई उन्नत सर्जिकल तकनीकें मौजूद हैं, जिनसे बेहतर परिणाम मिल रहे हैं।
गोनिओटॉमी (Goniotomy)- यह तकनीक शुरुआती मामलों में प्रभावी होती है। इसमें आंख के अंदर की जल निकासी प्रणाली को खोला जाता है, जिससे फ्लूइड आसानी से बाहर निकल सके।
ट्रेबेकुलोटॉमी (Trabeculotomy)
यह प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब गोनिओटॉमी से पर्याप्त परिणाम न मिले। इसमें Trabecular meshwork को काटा जाता है जिससे फ्लूइड फ्लो आसान हो जाता है।
ट्रेबेकुलेक्टॉमी (Trabeculectomy)
इस प्रक्रिया में आंख के भीतर एक नया आउटलेट बनाया जाता है ताकि अतिरिक्त फ्लूइड बाहर निकल सके। इससे IOP को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
ग्लॉकोमा ड्रेनेज इम्प्लांट्स (GDDs)
यह उन्नत तकनीक जटिल या बार-बार लौटने वाले मामलों के लिए उपयुक्त है। इसमें आंख में एक ट्यूब या शंट लगाया जाता है जिससे तरल आसानी से निकल सके।
माइटोमाइसिन-C का उपयोग
सर्जरी की सफलता दर बढ़ाने के लिए माइटोमाइसिन-C नामक दवा का प्रयोग किया जाता है। यह स्कार टिशू बनने से रोकती है, जिससे जल निकासी का रास्ता खुला रहता है।
सर्जरी के बाद की देखभाल
सर्जरी के बाद बच्चों को संक्रमण से बचाने की जरूरत होती है। कई बार बच्चों में भेंगापन (Strabismus) जैसी स्थितियां भी देखने को मिलती हैं, जिसे अलग से जन्मजात ग्लूकोमा का उपचार की आवश्यकता हो सकती है। चलिए इससे जुड़े महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा करते हैं।
आई ड्रॉप्स, स्टेरॉइड्स
सर्जरी के बाद बच्चों को आई ड्रॉप्स और स्टेरॉइड्स दिए जाते हैं ताकि सूजन और संक्रमण को रोका जा सके।
संक्रमण से सुरक्षा
सर्जरी के बाद बच्चों को संक्रमण से बचाने के लिए विशेष सावधानी रखनी होती है। आंखों को साफ और सुरक्षित रखना जरूरी होता है।
फॉलो-अप विजिट्स जरूरी
इलाज के बाद डॉक्टर के पास नियमित फॉलो-अप विजिट्स जरूरी हैं ताकि सर्जरी के परिणामों की निगरानी की जा सके।
संभावित जटिलताएं और प्रबंधन
कुछ मामलों में ग्लूकोमा के साथ-साथ एंब्लियोपिया (Amblyopia) यानी ‘आलसी आंख’ की समस्या भी विकसित हो सकती है। यह स्थिति दृष्टि के विकास में रुकावट डाल सकती है और इसका समय रहते इलाज ज़रूरी होता है।
स्कारिंग, IOP नियंत्रण में कमी
कुछ मामलों में आंखों के ऊतकों में स्कारिंग हो सकती है जिससे दबाव फिर से बढ़ सकता है।
दोबारा सर्जरी की जरूरत
अगर पहली सर्जरी के बाद IOP नियंत्रित न हो तो दूसरी या तीसरी सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है।
दृष्टि विकास की निगरानी
चूंकि यह स्थिति बचपन में होती है, इसलिए बच्चे की दृष्टि विकास पर लगातार नजर रखना जरूरी होता है।
निष्कर्ष
जन्मजात ग्लूकोमा का समय पर पता लगना और सही इलाज शुरू होना बच्चे की दृष्टि बचाने के लिए बेहद जरूरी है। आज के दौर में उपलब्ध उन्नत सर्जिकल तकनीकों से इस रोग का सफल इलाज संभव है। माता-पिता की सतर्कता, शुरुआती लक्षणों की पहचान और नियमित फॉलो‑अप मिलकर बच्चे की आंखों की रोशनी को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।
FAQs
यह नवजात शिशुओं में होने वाली एक दुर्लभ नेत्र रोग स्थिति है जिसमें आंखों के अंदर का दबाव खतरनाक रूप से बढ़ जाता है। यह दबाव ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचाकर दृष्टि को स्थायी रूप से प्रभावित कर सकता है।
लक्षण आमतौर पर जन्म के समय या पहले छह महीनों में दिखाई देने लगते हैं। कुछ बच्चों में यह धीरे-धीरे उभरते हैं और परिवार को पता नहीं चल पाता जब तक जांच न हो।
जन्मजात ग्लूकोमा का इलाज हो जाने के बाद भी बच्चे को पूरी जिंदगी निगरानी में रखना पड़ सकता है। आंखों के दबाव को नियंत्रित रखने के लिए लंबे समय तक फॉलो-अप और इलाज की आवश्यकता हो सकती है।
नेत्र चिकित्सक विशेष उपकरणों से IOP मापते हैं और आंख की संरचना की जांच करते हैं। छोटे बच्चों के लिए यह प्रक्रिया अक्सर एनेस्थीसिया के तहत की जाती है।
सर्जरी से दृष्टि को स्थायी नुकसान से बचाया जा सकता है, लेकिन यह बीमारी पूरी तरह समाप्त नहीं होती। प्रेशर को कंट्रोल में रखना मुख्य उद्देश्य होता है।
अगर बीमारी का पता समय पर चल जाए और कॉर्निया व ऑप्टिक नर्व को नुकसान न हो, तो दृष्टि लगभग सामान्य रह सकती है। देर से इलाज होने पर दृष्टि सुधार सीमित हो सकता है। यदि ग्लूकोमा के साथ-साथ एंब्लियोपिया की पहचान हो जाए, तो विशेष विजन थेरेपी और इलाज से काफी सुधार संभव है।
जैसे ही निदान होता है, सर्जरी की जा सकती है, चाहे बच्चा कुछ ही हफ्तों का क्यों न हो। छोटी उम्र में सर्जरी का फायदा यह होता है कि दृष्टि विकास को जल्दी बचाया जा सकता है।
पहली सर्जरी से यदि IOP पूरी तरह नियंत्रित न हो या अगर समय के साथ जल निकासी तंत्र दोबारा ब्लॉक हो जाए, तो दोबारा सर्जरी करनी पड़ सकती है। कुछ मामलों में आंख की प्राकृतिक संरचना ऐसी होती है कि एक ही सर्जरी काफी नहीं होती।
ग्लूकोमा ड्रेनेज डिवाइसेज़ (GDDs) का उपयोग विशेष मामलों में किया जाता है और वे विशेषज्ञों की निगरानी में काफी सुरक्षित साबित हुए हैं। हालांकि, इनके साथ लंबे समय तक मॉनिटरिंग और संभावित साइड इफेक्ट्स की निगरानी जरूरी होती है।
सर्जरी के शुरुआती तीन से छह महीने तक नियमित फॉलो-अप बेहद जरूरी होते हैं। बाद में, डॉक्टर की सलाह पर सालाना या अर्धवार्षिक निगरानी की जाती है।