विषयसूची
- क्या होता है बचपन का मोतियाबिंद (कंजेनिटल कैटरेक्ट)?
- बचपन में मोतियाबिंद के प्रमुख कारण
- बच्चों में मोतियाबिंद के लक्षण कैसे पहचानें?
- सर्जरी कब ज़रूरी होती है?
- बच्चों की मोतियाबिंद सर्जरी में क्या सावधानियां होती हैं?
- बचपन के मोतियाबिंद का समय पर इलाज क्यों ज़रूरी है?
- निष्कर्ष
- प्रश्नोत्तर
जब हम “मोतियाबिंद” सुनते हैं तो दिमाग में सबसे पहले बुज़ुर्ग लोगों की तस्वीर आती है। लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते कि बचपन में भी मोतियाबिंद हो सकता है। इसे मेडिकल भाषा में कंजेनिटल कैटरेक्ट कहा जाता है। यह भले ही कम मामलों में दिखाई दे, लेकिन बच्चों की नजर और उनके पूरे जीवन के लिए यह बहुत गंभीर साबित हो सकता है।
क्या होता है बचपन का मोतियाबिंद (कंजेनिटल कैटरेक्ट)?
जैसे बड़े लोगों में आंख का लेंस धीरे-धीरे धुंधला हो जाता है, वैसे ही कुछ बच्चों में यह समस्या जन्म के समय या जीवन के शुरुआती महीनों में दिखाई दे सकती है। लेंस का पारदर्शी होना बच्चों के विज़न विकास के लिए ज़रूरी है। अगर यह धुंधला हो जाए, तो आंख में आने वाली रोशनी रेटिना तक नहीं पहुंच पाती और बच्चा साफ नहीं देख पाता।
यह स्थिति न सिर्फ देखने की क्षमता को रोकती है बल्कि अगर समय पर इलाज न हो तो बच्चे का दिमाग भी सही तरह से “देखना” सीख नहीं पाता। यही कारण है कि इसे हल्के में लेना खतरनाक हो सकता है।
बचपन में मोतियाबिंद के प्रमुख कारण
हर माता-पिता का पहला सवाल यही होता है कि “मेरे बच्चे को यह क्यों हुआ?” असल में इसके कई कारण हो सकते हैं:
- जन्मजात कारण (Genetic/Hereditary):
अगर परिवार में किसी को बचपन में मोतियाबिंद रहा है तो यह आगे भी हो सकता है। कई बार यह समस्या बच्चे के जीन में पहले से मौजूद होती है, यानी यह जन्म के साथ ही आ जाती है। - संक्रमण:
गर्भावस्था के दौरान मां को अगर रुबेला, CMV या टॉक्सोप्लाज्मा जैसे संक्रमण हो जाएं तो बच्चे की आंखों पर असर पड़ सकता है। ऐसे में बच्चे की आंखों का लेंस जन्म से ही धुंधला हो सकता है, इसलिए गर्भवती महिलाओं को संक्रमण से बचना बहुत ज़रूरी है। - मेटाबोलिक रोग:
जैसे गलैक्टोसीमिया, जिसमें शरीर दूध की शुगर को सही तरह से नहीं तोड़ पाता, यह भी मोतियाबिंद की वजह बन सकता है। ऐसे बच्चों में शुरुआती महीनों में ही धुंधलापन या सफेद परत दिखाई देने लगती है। - ट्रॉमा या चोट:
कुछ बच्चों में आंख पर लगी चोट से भी मोतियाबिंद हो सकता है। खेलते समय या गिरने पर आंख में चोट लगना इस स्थिति को बढ़ा सकता है, इसलिए बच्चों की आंखों की सुरक्षा ज़रूरी है।
बच्चों में मोतियाबिंद के लक्षण कैसे पहचानें?
कई बार छोटे बच्चों में आंखों की समस्या पकड़ना आसान नहीं होता, क्योंकि वे बोलकर अपनी परेशानी नहीं बता पाते। ऐसे में माता-पिता को ही बच्चे के हावभाव और आंखों के व्यवहार पर ध्यान देना पड़ता है। अगर शुरुआत में लक्षण पहचान लिए जाएं तो इलाज जल्दी और बेहतर हो सकता है।
- पुतली में सफेद धब्बा:
अगर बच्चे की आंखों में काला हिस्सा (पुतली) सफेद, ग्रे या धुंधला दिखाई देने लगे तो यह मोतियाबिंद का शुरुआती संकेत हो सकता है। कई बार यह हल्की रोशनी में ज्यादा साफ दिखता है, इसलिए माता-पिता को समय-समय पर ध्यान से बच्चे की आंखें देखनी चाहिए। - नजर न मिलाना:
अगर बच्चा लोगों से नजर नहीं मिलाता या सामने रखी चीज़ों को ठीक से फॉलो नहीं करता, तो यह भी संकेत हो सकता है कि उसे साफ दिखाई नहीं दे रहा। बेहतर है तुरंत नेत्र विशेषज्ञ को दिखाया जाए। - आंखों का हिलना (Nystagmus):
कुछ बच्चों की आंखें लगातार हल्के-हल्के हिलती रहती हैं। इसे निस्टैग्मस कहा जाता है। यह इस बात का संकेत हो सकता है कि बच्चे को स्पष्ट दृष्टि नहीं मिल रही है और वह फोकस करने की कोशिश में आंखें हिला रहा है। - प्रकाश से डरना या असहज होना:
अगर बच्चा तेज़ रोशनी में आंखें खोलने से कतराता है या आंखें मिचकाता है, तो यह भी आंख की किसी गड़बड़ी का लक्षण हो सकता है। कई बार बच्चे रोशनी में रोने लगते हैं या मुंह फेर लेते हैं, यह सामान्य नहीं माना जाता। - विकास की गति धीमी होना:
जब बच्चे को सही तरह से दिखाई नहीं देता, तो उसका प्रतिक्रिया और सीखने की गति भी धीमी हो जाती है। जैसे वह खिलौनों को पकड़ने, चेहरों को पहचानने या इशारों को समझने में देर करता है। ऐसे संकेत मिलने पर तुरंत जांच करवाना चाहिए ताकि समय रहते इलाज हो सके।
सर्जरी कब ज़रूरी होती है?
बहुत से पेरेंट्स सोचते हैं कि “इतने छोटे बच्चे की सर्जरी कराना सुरक्षित है या नहीं?” असल में सच्चाई यह है कि बचपन का मोतियाबिंद जितना जल्दी हटाया जाए, उतना अच्छा होता है।
- अगर मोतियाबिंद छोटा है और रेटिना तक रोशनी जा रही है, तो डॉक्टर थोड़ी निगरानी रख सकते हैं।
- लेकिन अगर मोतियाबिंद इतना बड़ा है कि बच्चा बिल्कुल साफ नहीं देख पा रहा, तो पहले 6 हफ्तों से 3 महीने के भीतर ही सर्जरी करनी पड़ सकती है।
- देरी करने पर आंख और दिमाग की विज़ुअल कनेक्टिविटी सही से विकसित नहीं होती और बच्चे को जिंदगीभर देखने में दिक्कत रह सकती है।
बच्चों की मोतियाबिंद सर्जरी में क्या सावधानियां होती हैं?
बड़ों की तुलना में बच्चों की सर्जरी ज्यादा संवेदनशील होती है।
- एनेस्थीसिया: बच्चे सर्जरी के दौरान हिलते-डुलते हैं, इसलिए जनरल एनेस्थीसिया दिया जाता है। इसके लिए विशेषज्ञ एनेस्थेटिस्ट का होना ज़रूरी है।
- लेंस इम्प्लांट (IOL): छोटे बच्चों में हर बार तुरंत लेंस लगाना ज़रूरी नहीं होता। उम्र, आंख के आकार और भविष्य की जरूरत को देखकर डॉक्टर फैसला करते हैं।
- सर्जरी के बाद थेरेपी: कई बच्चों को चश्मा, कॉन्टैक्ट लेंस या विज़न थेरेपी की जरूरत पड़ती है।
- एम्ब्लायोपिया मैनेजमेंट: अगर एक आंख कमजोर रह जाती है तो पैच थेरेपी या अन्य तरीकों से “आलसी आंख” बनने से बचाया जाता है। एम्ब्लायोपिया मैनेजमेंट के बारे में विस्तार से पढ़ें: एम्ब्लायोपिया – कारण और इलाज
बचपन के मोतियाबिंद का समय पर इलाज क्यों ज़रूरी है?
आंखों का विकास बचपन के शुरुआती कुछ सालों में सबसे तेज़ी से होता है। इसी दौरान बच्चा पहली बार चीज़ों को पहचानना, रंगों को समझना और चेहरे याद रखना सीखता है। अगर इस समय आंखों को सही रोशनी और विज़ुअल स्टिम्युलेशन (Visual Stimulation) नहीं मिलता, तो आंख और दिमाग के बीच का तालमेल ठीक से नहीं बन पाता। नतीजा यह होता है कि बाद में चाहे कितनी भी कोशिश कर ली जाए, नजर पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाती।
अगर इलाज देर से शुरू किया जाए, तो बच्चा स्थायी दृष्टि हानि (Permanent Vision Loss) का शिकार हो सकता है। इससे उसकी रोजमर्रा की गतिविधियाँ, जैसे खेलना, पढ़ना या आसपास की चीज़ों को समझना, सब प्रभावित होते हैं। इलाज में देरी सीधे बच्चे के भविष्य पर असर डाल सकती है।
निष्कर्ष
बचपन का मोतियाबिंद कोई मामूली समस्या नहीं है। इसे मेडिकल इमरजेंसी की तरह देखना चाहिए। अगर माता-पिता शुरुआती लक्षणों को पहचानकर समय पर डॉक्टर तक पहुंचें तो सर्जरी से बच्चा सामान्य नजर पा सकता है।
याद रखिए, बच्चे खुद अपनी परेशानी नहीं बता सकते, इसलिए सजगता केवल माता-पिता को ही रखनी होगी।



