रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी (ROP) एक ऐसी आंखों की बीमारी है, जो समय से पहले जन्मे और कम वजन वाले शिशुओं में होती है। इसमें रेटिना की नसें ठीक से विकसित नहीं हो पातीं, जिससे अंधेपन तक का खतरा हो सकता है। खासतौर पर 32 सप्ताह से पहले जन्मे या 1.5 किलोग्राम से कम वजन वाले बच्चों में यह जोखिम अधिक होता है। यदि समय पर जांच (4–6 सप्ताह के भीतर) कर ली जाए, तो इस बीमारी को रोका या नियंत्रित किया जा सकता है।
ROP के कारण
इसके निम्नलिखित प्रमुख कारण होते हैं:
अत्यधिक ऑक्सीजन थेरेपी: रेटिना में पहले रक्त प्रवाह घटता है, बाद में VEGF बढ़ने से असामान्य नसें बनती हैं।
समय से पहले जन्म: 32 सप्ताह से कम गर्भकाल में जन्म लेने वाले बच्चों में अधिक जोखिम।
कम जन्म वजन: 1.5 किलोग्राम से कम वजन वाले शिशु ज़्यादा प्रभावित होते हैं।
लंबा NICU प्रवास: अधिक समय तक ऑक्सीजन और इलाज मिलने से ROP का खतरा बढ़ता है।
प्रीमेच्योरिटी की रेटिनोपैथी का पूर्वानुमान
प्रीमेच्योरिटी की रेटिनोपैथी (ROP) एक गंभीर नेत्र रोग है, जो समय से पहले जन्मे शिशुओं में होता है और समय रहते न पहचाना जाए तो अंधेपन का कारण बन सकता है।
कुछ बच्चे इस बीमारी के लिए हाई-रिस्क माने जाते हैं। इनमें वे बच्चे शामिल हैं जिनका गर्भकाल (GA) 30 से 32 सप्ताह या उससे कम होता है, या जिनका जन्म के समय वजन (BW) 1250 से 1500 ग्राम या उससे कम होता है। इसके अलावा, वे शिशु जिन्हें जन्म के बाद लंबे समय तक ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है या जो किसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या से ग्रसित होते हैं (जैसे संक्रमण, श्वसन की तकलीफ आदि), उन्हें भी ROP होने की संभावना अधिक होती है। ऐसे सभी बच्चों की समय पर आंखों की स्क्रीनिंग बहुत जरूरी होती है ताकि बीमारी की पहचान और इलाज सही समय पर हो सके।
प्रीमेच्योरिटी की रेटिनोपैथी की रोकथाम
प्रीमेच्योर बच्चों में रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी (ROP) को रोका जा सकता है यदि कुछ जरूरी बातों का समय पर ध्यान रखा जाए। यह रोग अक्सर समय से पहले जन्मे और कम वजन वाले शिशुओं को प्रभावित करता है, लेकिन सही प्रबंधन से इससे बचाव संभव है।
सबसे पहले, नवजात को दी जाने वाली ऑक्सीजन की मात्रा नियंत्रित होनी चाहिए। बहुत अधिक ऑक्सीजन रेटिना को नुकसान पहुँचा सकती है, इसलिए केवल आवश्यक मात्रा में ही ऑक्सीजन दें। इसके अलावा, शिशु की आंखों की स्क्रीनिंग गर्भकाल (GA) और जन्म के समय वजन (BW) के आधार पर तय समय पर जरूर करानी चाहिए, ताकि बीमारी की पहचान जल्दी हो सके। माँ का दूध और संतुलित पोषण शिशु के संपूर्ण विकास के साथ-साथ नेत्र विकास में भी अहम भूमिका निभाता है। और यदि किसी बच्चे में ROP के लक्षण दिखें, तो तुरंत नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श लेकर इलाज शुरू कराना चाहिए और नियमित फॉलो‑अप करना चाहिए। इन सभी उपायों से ROP को समय पर पहचाना और रोका जा सकता है।
ROP की जांच कैसे की जाती है?
ROP की पहचान और निगरानी के लिए विशेष नेत्र जांच की जाती है, जिससे रोग की स्थिति और प्रगति का सही पता चल सके। नीचे कुछ मुख्य जांच विधियाँ दी गई हैं:
डाइलेटेड फंडस एग्जाम: आंखों की दवाइयों से पुतलियाँ फैलाकर आई‑स्पेशलिस्ट रेटिना का सीधे निरीक्षण करते हैं।
डिजिटल रेटिनल कैमरा (RetCam): यह एक विशेष कैमरा है जो रेटिना की तस्वीर लेकर उसकी स्थिति को रिकॉर्ड करता है।
नियमित फॉलो‑अप: ROP की प्रगति पर नज़र रखने के लिए हर 1 से 3 सप्ताह में आंखों की दोबारा जांच की जाती है।
ROP का आधुनिक इलाज
ROP के इलाज के लिए स्थिति की गंभीरता के अनुसार अलग‑अलग तरीके अपनाए जाते हैं, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं
लेजर फोटोकागुलेशन
इस के अंतर्गत असामान्य रूप से बढ़ रही रक्त वाहिकाओं को लेज़र की मदद से जलाकर रोका जाता है। यह सबसे आम और प्रभावकारी तरीका है, जिसमें 90% से अधिक सफलता मिलती है ।
एंटी‑VEGF इंजेक्शन
बीवासीज़ूमैब, रानीबिज़ूमैब अथवा अफ्लिबेरसेप्ट का उपयोग रेटिनल VEGF को रोकने के लिए किया जाता है। ये कम इनवेसिव होते हैं, विशेषकर ज़ोन 1/एग्रसिव ROP में । हालाँकि, इसके बाद लंबी फॉलो‑अप आवश्यक होता है क्योंकि पुनरावृत्ति संभव है ।
विटरेक्टॉमी
गंभीर मामलों (लेवल 4–5) में, जहां रेटिना डिटैचमेंट हुआ होता है, फाइब्रोटिक टिश्यू को हटाने और रेटिना को पुन: लगाने के लिए विटरेक्टॉमी की जाती है। अर्थात ROP के गंभीर मामलों में, जहां रेटिना अलग हो गई हो, आंख की सर्जरी करके क्षतिग्रस्त टिश्यू हटाया जाता है और रेटिना को वापस जोड़ा जाता है।
ROP और भविष्य में दृष्टि संबंधी समस्याएं
निकट‑दृष्टि दोष (मायोपिया): ROP से ग्रस्त बच्चों में यह सबसे सामान्य दीर्घकालीन समस्या होती है, जिसमें दूर की चीज़ें धुंधली दिखती हैं।
स्टैब्रिस्मस (भेंगापन) और एम्ब्लियोपिया (लेटाई आई): ये समस्याएँ रेटिना के असंतुलन या कमजोर दृष्टि विकास के कारण हो सकती हैं।
ग्लूकोमा और कॅटरेक्ट (मोतियाबिंद): विशेषकर लेजर उपचार या आंख की सर्जरी के बाद ये जटिलताएँ विकसित हो सकती हैं।
नियमित नेत्र परीक्षण: ROP से उबर चुके बच्चों में इन दीर्घकालीन समस्याओं की पहचान और प्रबंधन के लिए समय-समय पर आंखों की जांच जरूरी है।
माता-पिता के लिए जरूरी सुझाव
ROP से बचाव और देखभाल के लिए कुछ जरूरी सुझाव इस प्रकार हैं।
- समय पर आंखों की स्क्रीनिंग जरूर कराएं, विशेषकर जीवन के पहले 4–6 सप्ताह में, और उसके बाद डॉक्टर की सलाह के अनुसार नियमित जांच कराते रहें।
- हाई‑रिस्क नवजात (जैसे समय से पहले जन्मे या कम वजन वाले शिशु) के मामले में अतिरिक्त सतर्कता बरतें और कोई भी लक्षण नजरअंदाज न करें।
- शिशु का नेत्र फॉलो‑अप हमेशा विशेषज्ञ द्वारा कराया जाए और हर विज़िट समय पर सुनिश्चित करें।
- नवजात ICU में रहते हुए निर्धारित स्क्रीनिंग प्रोटोकॉल, टीकाकरण और पोषण से जुड़े निर्देशों का पालन करना जरूरी है।
- यदि पलकों का बार‑बार बंद रहना, आंखों का मुड़ना या देखना बंद होना जैसे लक्षण दिखें, तो तुरंत नेत्र चिकित्सक से संपर्क करें।
निष्कर्ष
ROP समय से पहले जन्मे बच्चों में होने वाली एक गंभीर लेकिन समय पर पहचान और इलाज से पूरी तरह संभालने योग्य स्थिति है। स्क्रीनिंग और शुरुआती हस्तक्षेप दृष्टि को बचाने की सबसे अहम कड़ी हैं। आधुनिक उपचार विधियाँ जैसे लेजर, एंटी‑VEGF और विटरेक्टॉमी इसे सफलतापूर्वक नियंत्रित करने में मदद करती हैं। माता-पिता, चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों की समन्वित सतर्कता ही शिशु की दृष्टि सुरक्षित रख सकती है।
FAQs
ROP (रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी) समय से पहले जन्मे नवजातों में आँखों की बीमारी है, जिसमें रेटिना की रक्त वाहिकाएँ असामान्य रूप से विकसित होती हैं। यह आमतौर पर 32 सप्ताह से कम गर्भावधि और 1.5 किलोग्राम से कम वजन वाले नवजातों में होता है।
जन्म के पहले 30 दिनों के भीतर या 4–6 सप्ताह के भीतर डाइलेटेड फंडस एग्जाम और RetCam जैसे डिजिटल उपकरणों से नेत्र विशेषज्ञ द्वारा जांच कराई जानी चाहिए।
हाँ, आधुनिक चिकित्सा में लेजर फोटोकागुलेशन, एंटी-VEGF इंजेक्शन और विटरेक्टॉमी जैसी प्रभावी उपचार विधियाँ उपलब्ध हैं।
यदि समय पर जांच और उपचार न किया जाए तो यह रेटिना डिटैचमेंट और स्थायी अंधापन का कारण बन सकता है।
नहीं, लेकिन जो नवजात अधिक जोखिम में होते हैं (कम वजन, कम गर्भावधि, अधिक ऑक्सीजन थैरेपी), उन्हें जरूर जांच की आवश्यकता होती है।
लेजर उपचार रेटिना की रक्त वाहिकाओं को जलाकर उनकी ग्रोथ को रोकता है, जबकि एंटी-VEGF इंजेक्शन सीधे रेटिना में रक्त वाहिकाओं की वृद्धि को रोकते हैं। एंटी-VEGF कम इनवेसिव और कभी-कभी ज्यादा सुरक्षित विकल्प होता है।
हाँ, भविष्य में निकट दृष्टि दोष (Myopia) विकसित हो सकता है, जिससे चश्मे की आवश्यकता पड़ सकती है
हाँ, भेंगापन (स्ट्रैबिस्मस), लेज़ी आई (एंब्लियोपिया), ग्लूकोमा और मोतियाबिंद जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।
कई सरकारी मेडिकल कॉलेज और शिशु देखभाल इकाइयाँ (NICU) अब ROP स्क्रीनिंग सुविधा प्रदान कर रही हैं, लेकिन यह हर स्थान पर उपलब्ध नहीं है। निजी अस्पतालों में अधिक सटीक उपकरण होते हैं।
कुछ मामलों में विशेषकर एंटी-VEGF उपचार के बाद फॉलो-अप जरूरी होता है, क्योंकि दोबारा सक्रियता की संभावना बनी रहती है।