नॉर्मल टेंशन ग्लूकोमा (NTG): सामान्य आई प्रेशर के बावजूद ग्लूकोमा

नॉर्मल टेंशन ग्लूकोमा

विषयसूची

  1. नॉर्मल टेंशन ग्लूकोमा क्या है?
  2. नॉर्मल टेंशन ग्लूकोमा होने के कारण
  3. लक्षण और पहचान कैसे करें?
  4. नॉर्मल टेंशन ग्लूकोमा का निदान कैसे होता है?
  5. ग्लूकोमा इलाज के विकल्प
  6. समय पर पहचान क्यों जरूरी है?
  7. निष्कर्ष
  8. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न 

 

जब हम “ग्लूकोमा” सुनते हैं, तो सबसे पहले दिमाग में यही आता है कि आंख का प्रेशर (Intraocular Pressure) बढ़ गया होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आंख का प्रेशर सामान्य रहने पर भी ग्लूकोमा हो सकता है? जी हाँ, यही स्थिति कहलाती है, नॉर्मल टेंशन ग्लूकोमा (Normal Tension Glaucoma or NTG)। यह बीमारी चुपचाप आपकी आंखों की रोशनी छीन सकती है, और सबसे बड़ी चुनौती यह है कि शुरुआती दौर में इसके संकेत लगभग न के बराबर दिखते हैं।

नॉर्मल टेंशन ग्लूकोमा क्या है?

दरअसल, नॉर्मल टेंशन ग्लूकोमा ग्लूकोमा का वही प्रकार है जिसमें आई प्रेशर सामान्य (10–21 mmHg) रहता है, लेकिन फिर भी ऑप्टिक नस धीरे-धीरे खराब होने लगती है। फर्क इतना है कि अन्य प्रकारों में जहां दबाव बढ़ना मुख्य कारण होता है, वहीं NTG में वजह कुछ अलग होती हैं। यही कारण है कि कई बार मरीज और डॉक्टर, दोनों इसे देर से पहचान पाते हैं।

NTG में अक्सर ऑप्टिक डिस्क पर छोटे-छोटे हैमरेज, केंद्रीय दृष्टि के पास विज़न फील्ड में दोष और माइग्रेन जैसी समस्याएँ साथ दिखाई देती हैं। ग्लूकोमा को “silent thief” इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यह बिना शोर किये, धीरे-धीरे दृष्टि चुरा लेता है।

नॉर्मल टेंशन ग्लूकोमा होने के कारण

अब सवाल यह है कि जब प्रेशर सामान्य है, तो फिर नस क्यों खराब हो रही है? इसका कारण रक्‍तसंचार और नस की संवेदनशीलता होती है। कई बार आंख तक पर्याप्त रक्त नहीं पहुँच पाता, जिससे नेत्र तंत्रिका को ऑक्सीजन और पोषण की कमी होने लगती है। वहीं, कुछ लोगों की नस इतनी संवेदनशील होती है कि हल्के से दबाव या रक्तप्रवाह की थोड़ी सी कमी से भी प्रभावित हो जाती है। इसके अलावा आनुवांशिक कारक, रेनॉड्स डिज़ीज़, माइग्रेन या रात में रक्तचाप का गिरना जैसी स्थितियाँ भी NTG (Normal Tension Glaucoma) के विकास में भूमिका निभाती हैं। यानी NTG केवल दबाव की कहानी नहीं है, बल्कि कई छिपे हुए कारणों का मेल है।

लक्षण और पहचान कैसे करें?

यहीं से असली चुनौती शुरू होती है। NTG का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि शुरुआती चरण में कोई स्पष्ट ग्लूकोमा के लक्षण दिखाई ही नहीं देते। धीरे-धीरे नज़र कमजोर होने लगती है, जिसमें सबसे पहले साइड विज़न प्रभावित होता है। समय के साथ देखने का दायरा लगातार छोटा होता चला जाता है और अंततः इसे “टनल विज़न” कहा जाता है। अक्सर लोग समझते हैं कि रोशनी कम है या फिर यह केवल उम्र का असर है, जबकि वास्तव में यह ग्लूकोमा का संकेत हो सकता है।

ऑप्टिक डिस्क पर छोटे-छोटे रक्तस्राव और OCT स्कैन में रेटिनल परत का पतला होना NTG की ओर इशारा करते हैं। इसके अलावा माइग्रेन, ठंड में हाथ-पैरों का नीला पड़ जाना या रात में ब्लड प्रेशर का गिरना भी NTG के मरीजों में आम लक्षण पाए जाते हैं। यही कारण है कि डॉक्टर बार-बार चेतावनी देते हैं कि “ग्लूकोमा धीरे-धीरे रोशनी चुराता है, इसलिए समय पर पहचान और जांच बेहद ज़रूरी है।”

नॉर्मल टेंशन ग्लूकोमा का निदान कैसे होता है?

NTG का पता लगाना आसान नहीं है, क्योंकि इस स्थिति में आई प्रेशर सामान्य रहता है। फिर भी आधुनिक जांचें इसे पहचानने में सहायक होती हैं। इसमें सबसे पहले IOP माप शामिल है, जिसे दिन और रात के अलग-अलग समय पर किया जाता है ताकि प्रेशर के उतार-चढ़ाव को समझा जा सके। इसके साथ ही ऑप्टिक नस की जांच Ophthalmoscope और OCT के जरिए की जाती है, जिससे नस की संरचना और उसमें हो रहे बदलाव देखे जा सकते हैं।

इसके अलावा विज़न फील्ड टेस्ट बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि नजर किन हिस्सों से धीरे-धीरे कमजोर हो रही है। ज़रूरत पड़ने पर MRI या रक्तचाप की निगरानी जैसी अतिरिक्त जांचें भी की जाती हैं, ताकि अन्य कारणों को बाहर किया जा सके।

इस तरह स्पष्ट है कि NTG की पहचान के लिए केवल प्रेशर चेक करना पर्याप्त नहीं होता; पूरी आंख और विज़न फील्ड की गहन जांच बेहद ज़रूरी है।

ग्लूकोमा इलाज के विकल्प

अब सबसे अहम पहलू है – इलाज। NTG को पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन इसकी प्रगति को काफी हद तक रोका और नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए कई उपाय अपनाए जाते हैं।

सबसे पहले आई ड्रॉप्स दी जाती हैं। भले ही आई प्रेशर सामान्य हो, लेकिन इसे 20–30% और कम करने से ऑप्टिक नस को राहत मिलती है। कुछ मरीजों में ओरल मेडिकेशन दी जाती है, जो रक्त प्रवाह को बेहतर बनाकर नस की सेहत बनाए रखने में मदद करती है। अगर ड्रॉप्स और दवाएँ पर्याप्त न हों, तो लेज़र थेरेपी या सर्जरी के विकल्प सामने आते हैं।

इसके साथ ही लाइफस्टाइल में बदलाव बेहद ज़रूरी है, जैसे रक्तचाप को संतुलित रखना, धूम्रपान छोड़ना, नियमित व्यायाम करना और पर्याप्त नींद लेना। ये सभी कदम रोग की प्रगति को धीमा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

यानी, NTG का इलाज केवल दवाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें जीवनशैली सुधार भी उतना ही अहम है।

समय पर पहचान क्यों जरूरी है?

यहाँ एक बात स्पष्ट समझनी ज़रूरी है, ग्लूकोमा से हुई दृष्टि हानि वापस नहीं आती। इसी कारण समय पर पहचान और इलाज बेहद अहम है। अगर देर हो गई तो इलाज जटिल हो सकता है और नतीजे सीमित रह जाते हैं। वहीं, शुरुआती चरण में पहचान हो जाए तो दृष्टि को बचाया जा सकता है और बीमारी की प्रगति को रोका जा सकता है। इसलिए 40 साल से ऊपर हर व्यक्ति को, भले ही कोई तकलीफ़ न हो, साल में कम से कम एक बार आंखों की पूरी जांच ज़रूर करानी चाहिए।

निष्कर्ष

सामान्य आई प्रेशर के बावजूद ग्लूकोमा संभव है और इसे हल्के में लेना खतरनाक हो सकता है। नॉर्मल टेंशन ग्लूकोमा दिखाता है कि हमारी आंखों की सेहत सिर्फ “प्रेशर” पर निर्भर नहीं करती। नियमित टेस्ट, समय पर इलाज और स्वस्थ जीवनशैली से हम अपनी दृष्टि को सुरक्षित रख सकते हैं।

  • नॉर्मल आई प्रेशर के बावजूद ग्लूकोमा हो सकता है
  • समय पर जांच और उचित इलाज से दृष्टि बचाई जा सकती है
  • हर 40 वर्ष से ऊपर व्यक्ति को नियमित आई टेस्ट कराना चाहिए

FAQ

क्या सामान्य आई प्रेशर में भी ग्लूकोमा हो सकता है?

नॉर्मल टेंशन ग्लूकोमा के लक्षण क्या हैं?

क्या नॉर्मल टेंशन ग्लूकोमा का इलाज संभव है?

क्या यह रोग आनुवांशिक होता है?

नॉर्मल टेंशन ग्लूकोमा और ओपन-एंगल ग्लूकोमा में क्या अंतर है?

क्या यह पूरी तरह ठीक हो सकता है?

कितनी बार आंखों की जांच करवानी चाहिए?

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