नोएडा : दिवाली, रोशनी का पर्व, खुशियों, उत्सव और एकजुटता का प्रतीक है। लेकिन इस रोशनी और उमंग के बीच, आंखों से जुड़ी चोटों और इमरजेंसी मामलों में हर साल खतरनाक बढ़ोतरी देखी जाती है। देशभर के अस्पतालों में हर दिवाली के दौरान आंखों में जलन, जलने की चोटें, बाहरी कणों से चोट, संक्रमण और एलर्जिक रिएक्शन के मामलों में तेज़ी आती है — जिनका मुख्य कारण पटाखों और धुएं का सीधा असर होता है।
इस अवसर पर सेंटर फॉर साइट ग्रुप ऑफ आई हॉस्पिटल्स ने अपील की है कि लोग इस त्योहारी मौसम में अपनी आंखों — जो शरीर के सबसे नाज़ुक और अनमोल अंगों में से एक हैं — को हरसंभव नुकसान से बचाएं।
डॉ. महिपाल सिंह सचदेव, चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर, सेंटर फॉर साइट ग्रुप ऑफ आई हॉस्पिटल्स ने कहा, “पटाखे दिवाली की खुशी का प्रतीक ज़रूर हैं, लेकिन ये आंखों की चोटों का सबसे आम कारण भी बनते हैं। चिंगारियां, रॉकेट, अनार और बम जैसे पटाखे अगर चेहरे के पास फट जाएं तो ये गंभीर जलन, कॉर्निया पर चोट या यहां तक कि आंख फटने जैसी स्थिति भी पैदा कर सकते हैं। उड़ते कण, रासायनिक तत्व और धुआं आंखों में जलन, लालिमा, पानी आना और खुजली जैसी समस्याएं बढ़ा देते हैं। ख़ास तौर पर बच्चे और आसपास खड़े लोग, जो सीधे पटाखे नहीं जलाते, वे भी इनसे घायल हो सकते हैं। जो लोग चश्मा पहनते हैं, उनके चश्मे का शीशा फटकर आंखों में चला जाता है और चोट को और गंभीर बना देता है। कई बार ये चोटें स्थायी रूप से नज़रों को प्रभावित कर देती हैं। युवा वर्ग में दृष्टि हानि का मतलब है — लंबी अवधि तक या जीवनभर उत्पादकता और आजीविका पर असर पड़ना।”
पटाखों के अलावा, दिवाली के बाद वायु प्रदूषण में भी तेज़ी से इज़ाफा होता है। सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसों के साथ हवा में सूक्ष्म कण बढ़ने से आंखों में सूखापन, जलन और एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस की समस्या बढ़ जाती है। जो लोग पहले से ड्राई आई, कॉन्टैक्ट लेंस इस्तेमाल या हाल ही में आंखों की सर्जरी करवा चुके हैं, वे इस समय और अधिक संवेदनशील रहते हैं।
डॉ. सचदेव ने आगे कहा, “सावधानी ही सबसे अच्छी सुरक्षा है। पटाखे जलाते समय पर्याप्त दूरी बनाए रखना, धुएं या कणों के संपर्क में आने पर आंखें न रगड़ना, और पटाखे जलाते वक्त कॉन्टैक्ट लेंस न पहनना — ये छोटे लेकिन प्रभावी कदम हैं। अगर आंखों में जलन या परेशानी हो तो साफ़ पानी या सलाइन वॉश से आंखें धोना और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। दिवाली के बाद स्मॉग से बचाव के लिए एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल और प्रदूषण के चरम समय में घर के अंदर रहना भी फायदेमंद है। बच्चे सबसे ज़्यादा संवेदनशील होते हैं — उनके उत्साह में अक्सर सावधानी पीछे छूट जाती है। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को केवल हल्के स्पार्कलर ही जलाने दें, वह भी निगरानी में। बच्चों को सिंथेटिक की बजाय सूती कपड़े पहनाएं और केवल खुले स्थान पर ही पटाखे जलाने दें। बच्चों को दूरी बनाए रखने और बुनियादी सुरक्षा सिखाना गंभीर हादसों को रोक सकता है।”
अगर हम इको-फ्रेंडली पटाखे चुनें, या फिर पारंपरिक दीयों, सजावट और पारिवारिक मिलन के साथ दिवाली मनाएं, तो यह न केवल हमारी आंखों की सुरक्षा करेगा बल्कि पर्यावरण को भी स्वच्छ बनाएगा। आंखें अमूल्य हैं — एक छोटी सी लापरवाही भी आजीवन असर छोड़ सकती है।
इस दिवाली, ज़िम्मेदारी से जश्न मनाएं — अपनी नज़रों की सुरक्षा करें और वातावरण को स्वस्थ रखें।
सेंटर फॉर साइट की ओर से सभी को सुरक्षित, खुशहाल और जगमगाती दिवाली की शुभकामनाएं!
Source: https://samajjagran.in/